बकरी छोड़ किताब पकड़ो: जशपुर में अनोखा साक्षरता अभियान, बच्चे गोद में, बकरी स्कूल के बाहर,आदिवासी महिलाओं ने दिखाया शिक्षा का जज़्बा

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बकरी छोड़ किताब पकड़ो: जशपुर में अनोखा साक्षरता अभियान, आदिवासी महिलाओं ने दिखाया शिक्षा का जज़्बा

नीरज गुप्ता संपादक

जशपुर, 23 मार्च 2025:जशपुर जिले के आदिवासी क्षेत्र में इन दिनों एक मजेदार नजारा देखने को मिल रहा है। आमतौर पर बकरियों को चराने और जंगल में काम करने वाली ग्रामीण महिलाएं अब स्कूल पहुंचकर ककहरा सीख रही हैं। यह सब संभव हो पाया है उल्लास नवभारत साक्षरता अभियान के तहत, जो अनपढ़ लोगों को साक्षर बनाने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है।

बच्चे गोद में, बकरी स्कूल के बाहर

पत्थलगांव विकासखंड के पाकरगांव में स्कूल के अंदर मांएं अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर बैठी पढ़ाई कर रही हैं, जबकि स्कूल के बाहर बकरियां शांति से बंधी हुई हैं। गांव में अब पढ़ाई का यह अनोखा सिलसिला चर्चा का विषय बन गया है। महिलाएं जंगल में जाने के बजाय अब स्कूल में बैठकर ‘क’ से ‘कबूतर’ और ‘ख’ से ‘खरगोश’ सीख रही हैं।

अब अंगूठा छाप नहीं कहलाना है!”

गुरुजी इन महिलाओं को सिर्फ ककहरा ही नहीं सिखा रहे, बल्कि शिक्षा का महत्व भी समझा रहे हैं। महिलाओं का कहना है, “अब अंगूठा छाप नहीं रहना है! कम से कम अपना नाम तो लिखना आना चाहिए।” इस जज़्बे ने गांव में नई जागरूकता पैदा कर दी है।

केंद्र और आंकड़े:

विकासखंड स्रोत समन्वयक वेदानंद आर्य ने बताया कि पूरे जिले में 856 साक्षरता केंद्र बनाए गए हैं, जहां 19,851 निरक्षर लोगों को पढ़ाया जा रहा है। आदिवासी महिलाएं इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और अपनी घरेलू जिम्मेदारियों के बावजूद स्कूल आने की आदत डाल चुकी हैं।

सशक्तिकरण की ओर कदम

इस साक्षरता अभियान का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना है ताकि वे न केवल अपना नाम लिख सकें, बल्कि अपने बच्चों की पढ़ाई में भी मदद कर सकें। धीरे-धीरे शिक्षा का यह दीपक जशपुर और आसपास के गांवों में रोशनी फैला रहा है।

गांव में शिक्षा की नई तस्वीर: अब हर तरफ एक ही नारा गूंज रहा है –

“बकरी चराना बाद में, पहले पढ़ाई जरूरी है!”यह अनोखी तस्वीर शिक्षा के प्रति महिलाओं के बढ़ते जज़्बे और आत्मनिर्भरता की दिशा में उनके मजबूत कदमों की मिसाल बन चुकी है।

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