नगर पालिका परिषद पत्थलगांव प्लेसमेंट ठेका विवाद : हाईकोर्ट का निर्णय, अब पहुंचेगा सुप्रीम कोर्ट

नीरज गुप्ता संपादक मो न-9340278996

पत्थलगांव/रायपुर। नगर पालिका परिषद पत्थलगांव के प्लेसमेंट ठेका विवाद पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय सुना दिया है। मामला उस समय विवादों में आया था जब ऑनलाईन निविदा प्रक्रिया में न्यूनतम दर (एल-1) प्राप्त करने वाले ठेकेदार अमित कुमार अग्रवाल का ठेका नगर पालिका ने निरस्त कर दिया था।प्राप्त जानकारी के अनुसार, नगर पालिका द्वारा प्लेसमेंट श्रमिक प्रदाय कार्य के लिए 1 मई 2025 को निविदा आमंत्रित की गई थी। इसमें कुल छह ठेकेदारों ने भाग लिया। 29 मई 2025 को निविदा दर खोली गई, जिसमें अमित कुमार अग्रवाल की बोली सबसे कम पाई गई। नियमानुसार ठेका उन्हें मिलना तय था, किन्तु निविदा को निरस्त कर दिया गया। इस पर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय की शरण ली।न्यायालय ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता को ‘एल-1’ घोषित किए जाने के बावजूद निविदा को निरस्त किया गया, और यह निर्णय बिना ठोस कारण दर्ज किए तथा सुनवाई का अवसर दिए बिना लिया गया। कोर्ट ने माना कि यह कार्रवाई निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और मनमानी का संकेत देती है।हालाँकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि संविदात्मक और निविदा संबंधी मामलों में न्यायिक समीक्षा की सीमा सीमित है। चूँकि निविदा प्रक्रिया दो बार रद्द हो चुकी है और नई निविदा प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है, इसलिए पिछली निविदा को पुनर्जीवित करना संभव नहीं है। न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता नई निविदा प्रक्रिया में भाग लेने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही भविष्य में सभी निविदा प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने तथा ‘एल-1’ घोषित होने के बाद निविदा रद्द करने की स्थिति में ठोस कारण दर्ज कर विधिवत सूचना देने के निर्देश दिए।

याचिकाकर्ता का कथन

निर्णय के बाद याचिकाकर्ता अमित कुमार अग्रवाल ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय ने मेरे द्वारा लगाए गए आरोपों को सही ठहराते हुए अपने आदेश में स्पष्ट उल्लेख किया है कि निविदा प्रक्रिया में निष्पक्षता एवं पारदर्शिता नहीं रखी गई तथा मनमानी की गई। न्यायालय ने प्रतिवादी को भविष्य में इस प्रकार की कार्रवाई से परहेज करने के निर्देश दिए हैं। मैं न्यायालय के आदेश का सम्मान करता हूँ, किंतु मेरी अपेक्षित राहत हेतु अब मैं सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाऊँगा।इस प्रकार यह मामला अब उच्चतम न्यायालय तक पहुँचने की दिशा में अग्रसर है।

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