Chhattisgarh

जनजातीय समाज की संस्कृति और इतिहास गौरवशाली है। इसे हम सबको जानना चाहिए। गोमती साय

जनजातीय समाज की संस्कृति और इतिहास गौरवशाली है। इसे हम सबको जानना चाहिए। गोमती साय

आईटीआई अंबिकापुर में आयोजित जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत के कार्यक्रम मे शामिल हुई गोमती साय

Neerajneera

नीरज गुप्ता संपादक
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पत्थलगांव। शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था, अंबिकापुर द्वारा आयोजित जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सरगुजा विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष एवं पत्थलगांव विधायक श्रीमती साय शामिल होने पहुंची। जहां पुष्पगुच्छ और तिलक लगाकर भव्य स्वागत किया। जिसके बाद कार्यक्रम में सर्वप्रथम जनजातीय समाज के भगवान बिरसा मुंडा और रानी दुर्गावती की प्रतिमा मे पुष्पहार अर्पित कर दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया और राज्यकीय गीत के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत का सम्मान किया गया। भगवान बिरसा मुंडा और रानी दुर्गावती जैसे वीर नायकों की स्मृति में, समाज के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक योगदान का वंदन, अभिनंदन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य प्रवक्ता अजय इगलो (वनवासी कल्याण आश्रम के जिलाध्यक्ष),विशिष्ट अतिथि राम लखन पैंकरा (जनजाति गौरव समाज प्रदेश महामंत्री), अध्यक्ष श्री सी. एस पैंकरा (प्राचार्य ITI) अंबिकापुर, कार्यक्रम संयोजक श्रीमती संतोषी त्रिपाठी सहित संस्था के सभी सदस्यों व महाविधालय के छात्र छात्राओं की की गरिमामयी उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न हुआ।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती गोमती साय ने अपने उद्बोधन मे जनजातीय समाज की परंपराओं और आदर्शों के विषय मे विस्तार से बताते हुए कहा कि आदिवासियों का दिल बहुत बड़ा होता है, वो सभी का मान सम्मान पूरे परंपरा और रीति रिवाज के साथ करते हैं आदिवासियों में रीति रिवाज का बड़ा महत्व होता है फिर चाहे वो अपने अतिथियों का पैर धोना पाव पड़ना जैसी परंपराएं हैं हम आदिवासियों का पहनावा भी बहुत पारंपरिक होता हैं आज की पीढ़ी आदिवासी आभूषणों के नाम भी नहीं जानती होंगी। आदिवासी आभूषणों मे सिर मे सिंग, बेनी फूल, तो कानो मे ख़िनवा, वही गले मे सूता, पुतरी, हसली सुशोभित होती हैं तो हाथों बाजू और कलाइयों में चूरी, कड़ा, मुंदरी, एटी, भंवरही, नागमौरी जैसे आभूषण शामिल है और इन आभूषण के वैज्ञानिक महत्व भी है जैसे कि माथे में बिंदी लगाने की परम्परा केवल सुंदर दिखने के लिए नहीं बल्कि मस्तिष्क की एकाग्रता को बढ़ाने के लिए भी लगाई जाती हैं जिसे सभी नई पीढ़ी को इन परंपराओं को जानना है और सहेजने के साथ आगे बढ़ाने का संकल्प करना चाहिए जो धीरे धीरे विलुप्त ना हो । समाज की इस सांस्कृतिक विरासत को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने का यह प्रयास हम सभी को करना है जिसके लिए हम सभी को संकल्पित होकर काम करना है।

सरगुजा विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष श्रीमती गोमती साय ने कार्यक्रम मे आई टी आई कॉलेज के लिए सांस्कृतिक मंच निर्माण की घोषणा भी की। कार्यक्रम के अंत में संस्कृतिक कार्यक्रम के प्रतिभागियों को प्रशस्तिपत्र श्रीमती साय के करकमलों से भेंट किया और संस्था के प्राचार्य द्वारा श्रीमती साय जी को आदिवासी प्रतीक चिन्ह भेंट प्रदान कर किया गया।

श्रीमती गोमती साय ने इस आयोजन को एक महत्वपूर्ण अवसर बताया, जो न केवल जनजातीय समाज की गौरवशाली संस्कृति और इतिहास को याद करने बल्कि समाज को एकजुट करना भी है श्रीमती साय जी ने जनजातीय समाज की संस्कृति को सहेजने और उसे आगे बढ़ाना के लिए उनका योगदान और दृष्टिकोण समाज के समग्र विकास के लिए प्रेरणादायक हैं,जिसे हम सभी को अपने इतिहास और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए और उसे आगे बढ़ाना चाहिए।neeraj,harit,

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