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भारत में जमालुद्दीन और बिट्टू की कलात्मकता की कहानी

भारत में जमालुद्दीन और बिट्टू की कलात्मकता की कहानी

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(निर्मल कुमार)

 

विविध सांस्कृतिक धागों से बुनी हुई भारत भूमि को अक्सर सांप्रदायिक कलह की चुनौती झेलनी पड़ती है। इसी उधेड़ बुन के बीच, धार्मिक सीमाओं से परे एक मार्मिक कथा सामने आती है जिसमे पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के दो मुस्लिम मूर्तिकार जमालुद्दीन और बिट्टू, अपने शिल्प कौशल के माध्यम से सांप्रदायिक सद्भाव के प्रकाशस्तंभ के रूप में उभरते हैं।

 

दरअसल,2024 की 22 जनवरी के दिन उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर का भव्य उद्घाटन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में घटित होने वाली है। इस अद्भुत क्षण के उत्साह के बीच, जमालुद्दीन और बिट्टू की कहानी विविध भारत में आशा की किरण के रूप में चमकती है। ये दोनों मुस्लिम बंधु अपने शिल्प कौशल से भगवान राम सहित हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने में लगे हैं जो कि अलग-अलग आस्थाओं के प्रति गहरे सम्मान का उदाहरण है। उनका ये समर्पण मात्र मूर्तियाँ गढ़ने से कहीं आगे तक जाता है। यह समावेशिता और सांस्कृतिक समन्वय की भावना का प्रतीक है जो भारत की पहचान के केंद्र में है। बयानबाजी और संघर्ष से विभाजित राष्ट्र में उनकी रचनाएँ सद्भाव के पुल तैयार करते हुए खड़ी हैं, जो कुछ गुटों द्वारा प्रचारित विभाजनकारी आख्यानों को चुनौती देती हैं। कुछ लोग नफरत फैलाने वाले अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के साधन के रूप में धार्मिक तनाव का उपयोग करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं।

हालाँकि, राम मंदिर मुद्दे पर जमालुद्दीन का दृष्टिकोण ताज़ी हवा के झोंके के रूप में कार्य करता है। उनका मानना है कि धर्म व्यक्तिगत मामला है जिसे कला के निर्माण और उसकी सराहना में अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए। उनका रुख इस विचार का प्रमाण है कि सच्चा शिल्प कौशल कोई धार्मिक सीमा नहीं जानता है। यह वाक्य एक अनुस्मारक है कि, किसी की आस्था की परवाह किए बिना, कोई भी कलात्मक अभिव्यक्ति की सराहना कर सकता है और उसमें भाग ले सकता है। यह विश्वास संघर्ष के समय में विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण है जब किसी भी व्यक्ति के लिए विभाजनकारी बयानबाजी में फंसना बहुत आसान है। कला की एकीकृत शक्ति पर जोर देकर जमालुद्दीन का संदेश आशा और सकारात्मकता की किरण के रूप में सामने आता है। जमालुद्दीन और बिट्टू दो कलाकार हैं जो भारत में कई धर्मों की मूर्तियां बनाने में माहिर हैं। उनके कलात्मक कौशल न केवल धार्मिक मान्यताओं में अंतर का जश्न मनाते हैं बल्कि एक ऐसे वातावरण को भी बढ़ावा देते हैं जहां विविधता को महत्व दिया जाता है और मतभेदों का सम्मान किया जाता है।

विभिन्न धर्मों की मूर्तियां गढ़ने में जमालुद्दीन और बिट्टू की प्रतिबद्धता हमें बताती है कि मतभेदों के बीच, कला एक शक्तिशाली साधना है जो दिलों और आत्माओं को एकजुट करती है और विभाजन करने वाली रेखाओं को मिटा देती है। 

 

अंत में, यह कहानी भारत की सांस्कृतिक सुंदरता, विविधता के बीच एकता और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए मार्ग प्रशस्त करने का प्रतीक है। यह एक मूल्यवान सीख है जिसे दुनियावालों को सीखनी चाहिए। इनकी कहानी दुनिया के लिए आशा की किरण है और हमें प्रेरित करती है कि *विविधता कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि एक ताकत है जिसका उपयोग बेहतर कल बनाने के लिए किया जाता रहे।*

 

(लेखक भारतीय आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं। )

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