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लेख : सीरिया संकट और इस्लामिक स्टेट: सतर्कता, समझदारी और जिम्मेदार दृष्टिकोण की आवश्यकता

लेख : सीरिया संकट और इस्लामिक स्टेट: सतर्कता, समझदारी और जिम्मेदार दृष्टिकोण की आवश्यकता

*सीरिया में हुए तख्तापलट से उपजे हालात का आतंकवादी समूह अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक बड़ा झूठ फैला रहे हैं। सामाजिक व धार्मिक मामलों के जानकार निर्मल कुमार ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किये हैं।*

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सीरिया में हाल ही में हुए राजनीतिक और सैन्य घटनाक्रमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरी चिंता पैदा कर दी है। 8 दिसंबर 2024 को विद्रोही गुटों ने राष्ट्रपति बशर अल-असद के 24 वर्षीय शासन को समाप्त कर दिया, जिससे उन्हें देश छोड़कर रूस भागने पर मजबूर होना पड़ा। इस तख्तापलट के बाद, हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) विद्रोही गुट ने मोहम्मद अल-बशीर को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया। हालांकि, इस राजनीतिक बदलाव के बीच सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि कुछ कट्टरपंथी गुट इस घटनाक्रम को इस्लामिक स्टेट (ISIS) की जीत के रूप में चित्रित कर रहे हैं। वे इसे एक दिव्य अभियान का हिस्सा बताकर मध्य एशिया और अन्य क्षेत्रों के मुस्लिम युवाओं को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

कट्टरपंथी प्रचार और वास्तविकता का अंतर

कट्टरपंथी प्रचारकों द्वारा प्रस्तुत की जा रही यह व्याख्या न केवल भ्रामक है, बल्कि खतरनाक भी है। वे “इस्लामिक शासन” और “खिलाफत” की अवधारणाओं को तोड़-मरोड़कर युवाओं के बीच झूठा नैरेटिव गढ़ रहे हैं। यह प्रचार तंत्र युवाओं की धार्मिक भावनाओं को भड़काने और उन्हें हिंसा के मार्ग पर ले जाने के लिए तैयार किया गया है।

वास्तव में, सीरियाई संघर्ष एक बहुआयामी समस्या है, जिसमें कई गुट सत्ता, प्रभाव और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। ISIS जैसे चरमपंथी समूह इस संघर्ष को अपने “खिलाफत” के पुनर्जन्म के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। वे इसे एक धार्मिक युद्ध के रूप में प्रचारित करते हैं, जबकि उनकी गतिविधियाँ इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं।

यह एक वैचारिक जाल है, जो अंततः विनाश, मौत और पीड़ा की ओर ले जाता है।

इस्लामी शासन और ‘खिलाफत’ की सच्ची अवधारणा

“इस्लामी शासन” और “खिलाफत” की अवधारणा इस्लामी न्याय, परामर्श (शूरा), सहिष्णुता और करुणा पर आधारित है। इस्लामी परंपरा में शूरा का विशेष महत्व है, जिसमें शासक और जनता के बीच विचार-विमर्श होता है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक प्रारंभिक स्वरूप है।

ISIS द्वारा स्थापित तथाकथित “इस्लामिक स्टेट” एक आतंकवादी ढांचा था, जिसने इस्लामी सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन किया। उनका शासन अत्याचार, उत्पीड़न और हिंसा पर आधारित था। न्याय, दया और मानव गरिमा जैसे मूल इस्लामी सिद्धांतों को उन्होंने अपने राजनीतिक एजेंडे की पूर्ति के लिए तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया।

इसके विपरीत, इस्लामी इतिहास में वास्तविक जिहाद का अर्थ है – व्यक्तिगत सुधार, समाज में न्याय की स्थापना और मानवता की सेवा। जिहाद कभी भी आतंकवाद, हिंसा या निर्दोष लोगों की हत्या को सही नहीं ठहराता। यह शिक्षा, दान, शांतिपूर्ण प्रतिरोध और न्याय के लिए प्रयास करने के रूप में प्रकट होता है।

सीरियाई संघर्ष: चरमपंथी समूहों का एजेंडा

वर्तमान सीरियाई घटनाक्रम को कुछ कट्टरपंथी गुट “खिलाफत” की स्थापना के प्रयास के रूप में चित्रित कर रहे हैं। वे जिहाद और खिलाफत जैसे पवित्र शब्दों का दुरुपयोग कर युवाओं को अपने जाल में फंसाने का प्रयास कर रहे हैं। इस्लामी शिक्षाओं को विकृत करके, वे ऐसे नैरेटिव गढ़ रहे हैं जो हिंसा और अराजकता को बढ़ावा देते हैं।

इन समूहों का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम युवाओं की धार्मिक भावनाओं का दोहन करना और उन्हें अपने हिंसक अभियानों का हिस्सा बनाना है। यह एक वैचारिक जाल है, जो अंततः विनाश, मौत और पीड़ा की ओर ले जाता है।

युवाओं को शिक्षित और सतर्क रहना होगा

मुस्लिम युवाओं को इन कट्टरपंथी गुटों के झूठे प्रचार से सावधान रहना होगा। उन्हें इस्लामी शिक्षाओं का सही अर्थ समझने के लिए विद्वानों और धार्मिक विशेषज्ञों से मार्गदर्शन लेना चाहिए। इस्लाम शिक्षा, करुणा, मानवता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित धर्म है।

युवाओं को यह समझना होगा कि ISIS और अन्य चरमपंथी गुट इस्लाम के सच्चे सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इस्लाम में किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या को गंभीर पाप माना गया है। कुरान कहता है: “जिसने किसी निर्दोष की हत्या की, उसने संपूर्ण मानवता की हत्या की।” (सूरह अल-मायदा: 5:32)

समाज और नेतृत्व की भूमिका

• धार्मिक नेताओं को कट्टरपंथ के खिलाफ स्पष्ट और प्रभावी बयान देने होंगे।

• माता-पिता और शिक्षकों को युवाओं को चरमपंथी विचारधारा से दूर रखने के लिए शिक्षित और मार्गदर्शन करना होगा।

• सरकारों को कट्टरपंथ को रोकने के लिए ठोस नीतियाँ अपनानी होंगी।

• शिक्षण संस्थानों में सहिष्णुता, शांति और संवाद को बढ़ावा देना होगा।

इस्लाम: शांति और न्याय का धर्म

इस्लाम ने हमेशा ज्ञान, शांति और सहिष्णुता को प्राथमिकता दी है। इस्लामी इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब मुसलमानों ने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी न्याय, करुणा और सह-अस्तित्व के सिद्धांतों को बनाए रखा।

युवाओं को यह समझना होगा कि इस्लाम का सच्चा अनुसरण शिक्षा, सेवा, और सामाजिक सुधार के माध्यम से किया जाता है। यह हिंसा, रक्तपात या नफरत के माध्यम से संभव नहीं है।

ऐसे में समझने की जरूरत है कि सीरिया में हालिया राजनीतिक परिवर्तन को ISIS की जीत के रूप में प्रचारित करना एक खतरनाक झूठ है। मुस्लिम युवाओं को इस दुष्प्रचार से सतर्क रहना चाहिए और इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं को अपनाना चाहिए। आतंकवाद, हिंसा और चरमपंथ इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।यह प्रत्येक मुस्लिम की जिम्मेदारी है कि वह ज्ञान, शांति और न्याय के मार्ग पर चले। कुरान और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शिक्षाओं के आधार पर, हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए, जो करुणा, सहिष्णुता और मानवता के मूल्यों पर आधारित हो।

(यह लेख निर्मल कुमार के निजी विचार हैं।)neeraj,harit,

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