आदिवासी से गैर आदिवासी होकर डायवर्टेड जमीन पर बने पक्के मकान को 35 साल बाद आदिवासी के वारिसों ने जेसीबी से ढ़हाया, मकान तोड़ कर जबरन कब्जा

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पत्थलगांव। लगभग 35 वर्ष पूर्व पत्थलगांव अंबिकापुर रोड में स्थित एक आदिवासी जमीन को गैर आदिवासी को बेचने उपरांत उस जमीन पर गैर आदिवासी ने मकान निर्मित कर शासन से डायवर्टेड करवा लिया। अब 35 साल पश्चात विक्रेता आदिवासी के वारिसों द्वारा भू माफियाओं से सांठ गांठ कर दंबगई दिखाते हुए पक्का मकान को जेसीबी से तोड़कर जमीन को अपने कब्जे में करते नजर आ रहे हैं इस मामले में बेबस व लाचार गैर आदिवासी मकान स्वामी अपनी जमीन बचाने और मकान तोड़ने से हुए नुकसान पर कारवाई कराने दर-दर की गुहार लगाते नजर आ रहा है। पीड़ित गैर आदिवासी इस मामले में जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के समझ भी गुहार लगाई है।

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मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1990 में स्व. हीरालाल डनसेना के द्वारा स्व शनिराम उंराव से पत्थलगांव अम्बिकापुर रोड स्थित भूमि ख.न. 110/1 रकबा 2180 वर्गफुट जमीन क्रय कर पक्का मकान निर्माण कराकर निवास किया जा रहा था। उक्त भूमि पर न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी पत्थलगांव राजस्व प्रकरण क्रमांक 662/अ2/92-93 पक्षकार शासन बनाम हीरालाल बंधियाखार के प्रकरण मे दिनांक 30/8/1993 को उक्त भुमि को गैर कृषि कार्य मे परिवर्तवन का आदेष पारित किया जा चुका है। पीड़ित पक्ष ने बताया कि विक्रेता शनिराम उंराव के पुत्र अजय एवं अन्य के द्वारा हम आदिवासियों की जमीन है खाली कर दो नही तो पैसा दो कहकर उनसे अनेको बार कभी पांच हजार तो कभी दो हजार कहते हुए लाखों रूपए भी ले चुके है। 22 दिसंबरको जब वे लोग अपने पेत्रिक ग्राम सुरेशपुर आवश्यक कार्य से गए हुए थे तब दबंगों द्वारा बलात पूर्वक जेसीबी लगाकर उनके पक्के मकान को ध्वस्त कर समतल मैदान बना दिया गया। स्व हीरालाल डनसेना के नाम से वर्ष 1993 मे व्यवपरिवर्तित हो चुके जमीन में स्थित पक्का मकान को तोड़े जाने एंव कब्जा किए जाने के संबंध में अपना शिकायत दर्ज करने में ऑफिस ऑफिस भटकने को मजबूर है लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।

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पत्थलगांव में आदिवासी से गैर आदिवासी नामंतार्ण के सैकड़ो मामले
बता दे की पत्थलगांव शहरी क्षेत्र में ऐसे सैकड़ो मामले है जिनमे आदिवासी की जमीन गैर आदिवासी के नामांतरण कर बड़े बड़े व्यवसायिक परिसर का निर्माण हो गया है इस तरह का मामला सामने आने के बाद जहा मूल भूमि स्वामी आदिवासी के वारिसानो द्वारा अपनी पैत्रिक जमीन पर अपना हक जताया जा सकने की मंशा से ही कब्जेधारी गैर आदिवासी सहम से गए है