पत्थलगांव में कांग्रेस बिना दूल्हे की बारात, कांग्रेस पार्षद बने दर्शक!निर्विरोध भाजपा उपाध्यक्ष बनने पर कांग्रेसी सोशल मिडिया में सिर खुजला रहे हैं।

पत्थलगांव में कांग्रेस बिना दूल्हे की बारात, कांग्रेस पार्षद बने दर्शक!

कांग्रेस पार्षद बोले—”कोई मीटिंग ही नहीं हुई!”

नीरज गुप्ता संपादक

पत्थलगांव। पत्थलगांव नगर पंचायत में भाजपा ने उपाध्यक्ष पद पर निर्विरोध जीत दर्ज कर ली, लेकिन असली मजा कांग्रेस के “खेल से बाहर” रहने में है! पूरे 5 पार्षद होने के बावजूद कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारने की जहमत नहीं उठाई, जिससे उनके ही शुभचिंतक सिर खुजला रहे हैं।

बिना दूल्हे की बारात” बनी कांग्रेस

अब सवाल उठता है—क्या कांग्रेस पार्षद नींद में थे या किसी ने उन्हें नींद की गोली खिला दी थी? कांग्रेसियों का जवाब भी कम दिलचस्प नहीं है! उनका कहना है कि “हम क्या करते? किसी ने मीटिंग ही नहीं बुलाई!” अरे भाई, टिकट कटा हो तो दुख समझ आता है, मगर मैदान खाली छोड़ने का दर्द कौन समझाए?कांग्रेस की हालत देखकर लोग कह रहे हैं कि पार्टी ऐसी बारात बन गई है, जिसका दूल्हा ही नहीं है! स्थानीय संगठन निष्क्रिय है, कार्यकर्ता बिखरे हुए हैं, और विपक्ष की भूमिका निभाने वाला कोई नहीं दिख रहा।

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इधर सोशल मीडिया पर कांग्रेस के ही लोग अपने पार्षदों को “इमान बेचने” का आरोप लगाने में जुट गए हैं। मजे की बात यह है कि महीनों पहले ही कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष ने इस्तीफा सौंप दिया था, लेकिन वह मंजूर हुआ या नहीं, इसका भी कोई पता नहीं! कांग्रेस कार्यकर्ता इस स्थिति में ऐसे खड़े हैं जैसे बिना दूल्हे की बारात में बाराती!

अब जनता पूछ रही है—”जब कांग्रेस के नेता ही नदारद हैं, तो विपक्ष की भूमिका कौन निभाएगा?” शायद कांग्रेस को खुद पर ही भरोसा नहीं रहा, या फिर वे विपक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त होकर सिर्फ सोशल मीडिया योद्धा बनने में व्यस्त हैं! मधुर गुँजन: चुप रहोअब देखना ये होगा कि कांग्रेस इस “नो शो” के बाद अपनी रणनीति बदलती है या फिर सिर्फ सोशल मीडिया पर बयानबाजी करके खुद को विपक्ष मानती रहेगी!

आगे देखिए, कांग्रेस का अगला कदम—या फिर वही ‘नो स्टेप’ वाली रणनीति?

कोतबा  नगर पंचायत में भी कांग्रेस की फजीहत!

 आपसी कलह और संगठन की कमजोरी से भाजपा को मिला उपाध्यक्ष पद

नीरज गुप्ता संपादक

 कोतबा नगर पंचायत में भी कांग्रेस की कहानी वही रही—संख्या थी, मगर संगठन नहीं! पर्याप्त पार्षद होने के बावजूद आपसी गुटबाजी और कमजोर नेतृत्व के कारण कांग्रेस के हाथ से उपाध्यक्ष पद निकल गया और भाजपा में गए एक पूर्व कांग्रेसी पार्षद ही उपाध्यक्ष बन गए।

 

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