आदिवासी से दान में ली,पट्टे में दी! मंडी की जमीन ,कूटरचना कर करोड़ों की जमीन हड़प लिया, हाईकोर्ट में मामला लंबित,

गरीब आदिवासी की भूमि पर अवैध पट्टा! कूटरचना कर करोड़ों की मंडी की जमीन हड़प लिया, हाईकोर्ट में मामला लंबित

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नीरज गुप्ता संपादक हरितछत्तीसगढ़

पत्थलगांव। पत्थलगांव की बहुचर्चित बेशकीमती मंडी जमीन हेराफेरी में सरकार पर भी सवाल यह उठ रहे है जानकारी के मुताबिक यह बेशकीमती जमीन कभी एक गरीब आदिवासी की पैतृक भूमि थी। गरीब आदिवासी की जमीन को गैर-आदिवासी के निजी हित में पट्टे पर दे दिए जाने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। मिशल बंदोबस्त के अनुसार, यह भूमि आदिवासी परिवार के नाम पर दर्ज थी, बताया जाता है कि उस समय प्रशासन ने गांव में शासकीय कार्यालय, या सार्वजनिक संस्थानों की आवश्यकता बताते हुए आदिवासी परिवार को “सार्वजनिक हित” के नाम पर दान कर देने के लिए राजी किया। भोले-भाले आदिवासी परिवार ने गांव के विकास के लिए अपनी पैतृक भूमि छोड़ दी, लेकिन बाद में उसी जमीन को निजी लाभ के लिए एक गैर-आदिवासी को पट्टे में दे दिया गया, जिससे पूरे प्रकरण की नैतिकता और वैधता दोनों पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। बता दे की शासन ने 1950-51 में सार्वजनिक हित में उक्त जमीन की उपयोगिता बताते हुए गांव के विकास की आवश्यकता पूर्ति के लिए आदिवासी परिवार से 1 एकड़ 60 डिसमिल भूमि को नजूल घोषित कर अधिग्रहण कर लिया था। जिस तरह आदिवासी जमीन को नियमों केतहत अधिग्रहित किया गया उन नियमो में अधिगृहित जमीन को पट्टे में देने का कोई नियम ही नहीं है।

आश्चर्य की बात यह है कि गांव के विकास हेतु दान जैसा में ली गई इस आदिवासी भूमि को बाद में गैर-आदिवासी बनवारीलाल को पट्टे पर दे दिया गया। आरोप है कि 30 सितंबर 1956 को तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर द्वारा बनवारीलाल को केवल 4356 वर्ग फीट का पट्टा दिया गया था, लेकिन उसने कागजातों में हेरफेर कर रकबा बढ़ा दिया और इसे लगभग 12 एकड़ दर्शा दिया।

फर्जी पट्टे की मंडी! आदिवासी जमीन पर खड़ा भ्रष्टाचार का महल

जानकारी के अनुसार, पट्टे में भारी कूटरचना की गई है। दस्तावेजों में अलग-अलग स्याही का उपयोग किया गया है, जिससे फर्जीवाड़े की आशंका और गहरा जाती है। वर्ष 1972 में जब शासन ने इस भूमि पर मंडी निर्माण की योजना बनाई तो बनवारीलाल ने आपत्ति जताई थी। जांच में उस समय के एसडीएम ने पूरे मामले को फर्जी बताया था। इस पूरे प्रकरण का खुलासा नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष दुलार साय की शिकायत के बाद हुआ। मामला वर्तमान में उच्च न्यायालय में लंबित है। यह केस न केवल करोड़ों की शासकीय भूमि पर अवैध कब्जे और पट्टे के फर्जीवाड़े से जुड़ा है, बल्कि आदिवासी अधिकारों के हनन का भी गंभीर उदाहरण बन गया है।

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नीरज गुप्ता संपादक हरितछत्तीसगढ़

हैरानी की बात यह है कि इस केस में एक पूर्व एसडीएम व पूर्व पटवारी की संदिग्ध भूमिका भी उजागर हुई है। आरोप है कि उन्होंने हाईकोर्ट में जानबूझकर गुमराह करने वाला जवाब दाखिल किया, जिससे न्याय की प्रक्रिया प्रभावित हुई।अब देखना यह होगा कि न्यायालय इस जटिल प्रकरण में कब तक न्याय की राह प्रशस्त करता है और दोषियों पर कब तक कार्रवाई होती है।

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