Chhattisgarh

रजिस्ट्रार के प्रशासनिक अनुभव की कमी से पिछड़ा संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय

*रजिस्ट्रार के प्रशासनिक अनुभव की कमी से पिछड़ा संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय*

//16 सितंबर 2024//

सरगुजा संभाग के पहले विश्वविद्यालय संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय 2008 से अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही हमेशा विवादों में रहा है। आदिवासी बाहुल्य संभाग में सरकार ने यहां के विद्यार्थियों के उच्च शिक्षा सहित खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे खिलाड़ियों के समुचित विकास के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की थी लेकिन वर्तमान परिस्थिति में ना तो विश्वविद्यालय अंतर्गत महाविद्यालयों में शैक्षणिक व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए विश्वविद्यालय की ओर से कोई पहल दिख रही है और ना ही विश्वविद्यालय स्वयं अपने भवन में शिफ्ट होने के लिए गंभीर दिख रही है।

 

 प्रदेश में उच्च शिक्षा प्राप्ति के आधिकाधिक अवसर उपलब्ध कराने के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध छत्तीसगढ़ सरकार विश्वविद्यालयों को विभिन्न सुविधाएं देने को तत्पर है लेकिन संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय के वर्तमान रजिस्ट्रार में कार्य अनुभव और प्रशासनिक क्षमता में घोर कमी दिख रही है। संभाग के लगभग सभी प्रमुख महाविद्यालयों सहित वर्तमान व पूर्व छात्रों में चर्चा है कि इतने अनुकूल परिस्थितियों के बाद भी विश्वविद्यालय प्रबंधन कुछ कर नही पा रहा है जिसकी सबसे बड़ी वजह तत्काल निर्णय नहीं लेने की कमी और प्रशासनिक पकड़ में ढीलापन साफ दिखाई दे रहा है। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार अपनी ढीली कार्यशैली और अक्षमता की वजह से काफी चर्चा में हैं।

अंबिकापुर के भकुरा में बन रहे विश्वविद्यालय के नए परिसर में प्रशासनिक भवन, विज्ञान व कला विभाग, स्टाफ क्वॉटर, लाइब्रेरी और ऑडिटोरियम का काम चल ही रहा है जिसके निर्माण और व्यवस्थापन की निर्धारित अवधि भी लगभग पूर्ण हो चुकी है पर विश्वविद्यालय प्रबंधन को इस बात की सुध नहीं है। विश्वविद्यालय प्रबंधन ना तो प्राध्यापकों की कमी पर विचार कर रहा है और ना ही संभाग के विद्यार्थियों के लिए किसी नए संकाय या विषय को प्रारंभ करने पर चिंतित दिख रहा है।

एक ओर छत्तीसगढ़ के ही बस्तर में शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय निरंतर अपनी प्रशासनिक स्थिति को मजबूत बनाए हुए है और वहां के विद्यार्थियों को इसका बहुत लाभ मिल रहा है। वहां के छात्र राज्य स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं तो सरगुजा के इस विश्वविद्यालय को खुद के अस्तित्व के लिए पता नही कब तक संघर्ष करना पड़ेगा।

विश्वविद्यालय के एक कर्मचारी द्वारा अपना नाम नही छापने की शर्त पर बताया गया की विश्वविद्यालय अंदरूनी राजनीति का शिकार हो चुका है जिसकी वजह से आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र का यह पहला विश्वविद्यालय बहुत पीछे चला गया है। कुल मिलाकर विश्वविद्यालय प्रबंधन की नाकामी और रजिस्ट्रार के कार्य अनुभव की घनघोर कमी पर अगर जल्दी ही शासन ने कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया तो निकट भविष्य में भी विश्वविद्यालय अपने अस्तित्व को तलाशता रह जायेगा।neeraj,harit,Neerajneera

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