सड़कों से गांवों तक पहुंचने की कोशिश, यह कोई बात बुरी तो नहीं बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक
सड़कों से गांवों तक पहुंचने की कोशिश, यह कोई बात बुरी तो नहीं
बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक
बीते कुछ वर्षों से विपरीत दलों की सरकारों में आपसी अदावत बढ़ी है। इस अदावत के लिए कौन जिम्मेदार है, सब जानते हैं। हर दल अपने आपको लोकतंत्र का पहरूआ बता रहा है। लेकिन इस अहंकार को नहीं छोड़ पा रहा कि वह विपक्ष में भी बैठ सकता है। 2014 के बाद से ऐसी अदावतें बढ़ी हैं। इसका कारण साफ है, सदा सत्ता मे रहने का अहंकार। जनता की राय का अपमान। साठ साल तक राज करके ऐसा स्वभाव हो जाना स्वभाविक भी है, किंतु चुनावी लोकतंत्र में इसे जितने जल्दी हो समझ लेना चाहिए। आज हैं कल नहीं हैं, कल रहेंगे परसों नहीं होंगे। जनता जिसे चाहेगी वही बैठेगा और वह वैसा ही करेगा जैसा करने के लिए उसे चुना गया है।
छत्तीसगढ़ में इस बात को ठीक से समझ लिया गया है। जमीन पर महसूस किया जा रहा है। कहीं कोई चूक न हो पाए इसलिए जनता को सबसे ऊपर जानकर उससे किए वादों को पूरा किया जा रहा है। आलोचना की जा सकती है, किंतु धैर्यपूर्वक देखेंगे तो समझ आएगा आलोचना बेवजह है। चूंकि जो कहा वह करना और वह करके दिखाना ही सफल सियासत और राजनेता की पहचान है। बदले हुए दौर में समझ लेना होगा, लोगों को गुमराह करना अब संभव नहीं है।
साल 2023 के विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ में भाजपा की विजय वास्तव में बदले जनमत का ही प्रमाण है। इसमें भी सरकार संचालन के लिए ऐसे व्यक्तित्व का चयन बड़ी चुनौती थी, जिसकी स्वीकार्यता, अनुभव, विनम्रता, मिलनसारता, सियासत की समझ, विकास के कार्यों के प्रति सकारात्मक रवैया और टीम को लेकर चलने का हुनर हो। इस मामले में मोदी की गारंटी और मोदी का चयन दोनों को मानना ही पड़ेगा।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का महकमा यूं तो देशभर में सड़कों की सुंदरता, मजबूती और सुलभता के लिए जाना जाता है। लेकिन इसमें भी छत्तीसगढ़ के लिए दिल खोल देना महत्वपूर्ण बात है। सड़कों का निर्माण एक सतत प्रक्रिया है। 2018 तक प्रदेश में सड़कों का निर्माण सामान्यतः अच्छी रफ्तार से चल रहा था, किंतु बाद के कुछ वर्ष जैसे काम रुक गया। न गलियों में निर्माण हो रहा था, न गांवों में। जो नेशनल हाईवे भी बन रहे थे तो उन्हें भी स्टेट लेवल के क्लीयरेंस गैर प्राथमिकता में मिलता था। यानि मिल गया तो मिल गया नहीं तो किसी को पड़ी नहीं थी। परंतु अब ऐसा नहीं है।
नए दौर में सड़कों को लेकर सरकार आंतरिक रूप से स्पष्ट है। वह मानती है, भले ही कितनी ही रफ्तार से समाज में बदलाव हो रहे हों, लेकिन सड़क, बिजली, पानी मूलभूत जरूरतें बनी रहेंगी। जो भी सरकार इनसे खिलवाड़ करेगी, उसे भुगतना पड़ेगा। इस बात को जो राजनीतिक दल सत्ता में रहते ही समझ जाए वह समझदार, अन्यथा अहंकार तो कोई भी कुर्सियों पर विराजते ही पाल ही लेते हैं।
प्रदेश की दुखती रग रहा है जशपुर, पत्थलगांव रोड, केशकाल का घंटो जाम को मजबूर टेढ़ामेढ़ा रास्ता, बस्तर को और दूर करता धमतरी-जगदलपुर का रास्ता। बस्तर के अन्य आंतरिक रास्ते, सरगुजा के भीतरी इलाकों के रोड, बिलासपुर संभाग में आने वाले जिलों की सड़कें। यह सब चीख-चीखकर कह रही हैं इनका निर्माण जरूरी है। वर्तमान सरकार ने सारी बातों को मजबूती से रखा। मुख्यमंत्री ने पूरी सच्चाई से गडकरी से सहयोग मांगा। विभागीय मंत्री ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। पैसा भी मिला, समय-सीमा का वादा भी मिला और प्रदेश की ओर से वचनबद्धता भी दी गई। यही होना चाहिए। केंद्र बड़प्पन दिखाता है और प्रदेश अपने गरिमा और आवश्यकता के अनुरूप काम करते हैं। वाद-विवाद की कोई जगह नहीं होती।
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ वर्षों में विवाद ने स्थान लिया था। असहमतियों का भ्रम खड़ा किया गया। संकुचित राजनीतिक सोच के चलते टकराव पैदा किए गए। अब यह सब खत्म हो गए हैं। नतीजे में प्रदेश को हजारों करोड़ की सड़कें मिल रही हैं। यह सड़कें एक ही दल की केंद्र और प्रदेश में सरकार होने से भी मिल रही हैं। संभवतः इसे ही डबल इंजन की सरकार कहा गया था। सड़कों के जरिए गांवों तक पहुंचने की कोशिश, कोई बात बुरी तो नहीं है। क्या इसकी भी आलोचना करेंगे आप?