Kota-Updete:-गांव की पगडंडियों से शिक्षा का अलख जगाने एक शिक्षक का संदेश।-शिक्षा की शुरुआत स्कूल की दीवारों से नहीं शिक्षक के कदमों से होती है।-

**दिनांक:-08/07/2025**✒️मोहम्मद जावेद खान हरित छत्तीसगढ✒️।

करगीरोड-कोटा:-एक ओर जहां प्रदेश में युक्तियुक्तकरण के नाम पर शासकीय स्कूल बंद किए जा रहे है.. शिक्षा की अलख जगाने देश के बच्चों का भविष्य बनाने वाले विद्यालय की जगह प्रदेश में मदिरालय को ज्यादा तरजीह दी जा रही है..?छत्तीसगढ की तर्ज पर ही यूपी में भी 5 हजार शासकीय स्कूल बंद हो रहे है,यूपी के स्कूली बच्ची का इन दिनों एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर एक वीडियो वायरल हो रहा है.. जिसमें उस बच्ची ने शिक्षा को लेकर काफी गहरी बात कही है..वो बच्चे कहती हैं..”स्कूल का निर्माण सैकड़ों जेल बंद करने के बराबर है..”वही एक स्कूल का बंद होना हजारों अपराधी बनाने के बराबर है..?”आज ये स्कूल बंद हो रहे हैं, तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है..?मगर ये 5 किलो राशन और शराब के ठेके बंद हो जाए तो सभी का खून खौल उठेगा..शिक्षा आपको वो सभी संवैधानिक अधिकार प्रदान करता है,जिसके आप हकदार है।**शिक्षा की शुरुआत स्कूल की दीवारों से नहीं शिक्षक के कदमों से होती है..एक नई सुबह एक नए दौर की शुरुआत गांव की पगडंडियों से शिक्षा का अलख जगाने बच्चों को साथ में विद्यालय ले जाते हुए कोटा विकासखंड के एक शासकीय स्कूल मझगांव के प्रधानाचार्य दिखाई दिए..नंगे पाँव सही लेकिन सपनों में उड़ान है..यह दृश्य उस समय जीवंत हो उठा जब मझगांव के एक सरकारी विद्यालय के प्रधानाचार्य स्वयं बच्चों का हाथ थामे गांव की कीचड़ भरी गलियों से होकर उन्हें अपने साथ स्कूल ले जाते हुए नजर आए।

ये मासूम बच्चे मामूली नहीं उनके चेहरे पर न ही मासूमियत की कमी थी न ही हिम्मत की स्कूल की ड्रेस में कुछ अधूरी कड़ियाँ थीं.. पाँव में चप्पलें नहीं थीं लेकिन आँखों में उज्ज्वल भविष्य की चमक साफ-साफ दिखाई दे रही थी शिक्षक का यह भाव सिर्फ स्कूल तक पहुँचना नहीं था..यह सपनों को सहारा देने का संकल्प था..नई सुबह नया दौर शिक्षक और एक कदम यह महज एक वाक्य नहीं बल्कि शिक्षा के पुन- र्जागरण का प्रतीक है, जब शिक्षक खुद नन्हे कदमों के साथ पगडंडी पर उतरता है..तो वह पूरे समाज को संदेश देता है..जब बच्चे स्कूल चलते हैं..तो सिर्फ बच्चे नहीं एक पूरा समाज आगे बढ़ता है..काँटों भरे रस्ते भी आसान बन जाते हैं, जब शिक्षक अपने शिष्यों के हाथ थामे उनके साथ चलते हुए जाते हैं नंगे पाँव सही पर हौसलों में जान है..हर बच्चा इस धरती की पहचान है..न कोई सुविधा न कोई शोर है फिर भी यह शिक्षा का असली दौर है।

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